पीलिया
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पीलिया कैसे होता है इसका कारण, लक्षण, और उपचार

पीलिया एक बीमारी है जो अक्रिय तौर परिसर और त्वचा को पीला बना देती है, और यह विभिन्न कारणों से हो सकती है। यह एक प्रकार की जिगर की बीमारी है जिसमें लाल रक्त कोशिकाएं तैयार नहीं हो पातीं, जिससे रक्त में हेमोग्लोबिन की कमी होती है। यह बीमारी अक्सर बच्चों और युवा वयस्कों में देखी जाती है, लेकिन यह किसी भी आयु समूह को प्रभावित कर सकती है।

इसके कुछ मुख्य कारण हैं:

  1. हेपेटाइटिस इन्फेक्शन: हेपेटाइटिस वायरस के कारण यह बीमारी हो सकती है। हेपेटाइटिस B और C वायरस से होने वाली इन्फेक्शन पीलिया के कारण हो सकती हैं।
  2. मलेरिया: मलेरिया एक अन्य कारण हो सकता है जिससे पीलिया होती है। मलेरिया के कारण लाल रक्त कोशिकाएं तैयार नहीं हो पातीं और पीलिया हो सकती है।
  3. आलसी त्वचा: कई बार तेज आलसी त्वचा के कारण भी पीलिया हो सकती है। इसका मतलब है कि जिगर में समस्याएं आ सकती हैं जो हेमोग्लोबिन की उत्पत्ति को बढ़ा सकती हैं।
  4. गैलब्लैडर की समस्याएं: गैलब्लैडर में समस्याएं भी पीलिया का कारण बन सकती हैं। गैलब्लैडर से संबंधित समस्याएं हेमोग्लोबिन की सही मात्रा में रोकथाम कर सकती हैं।

इन कारणों के अलावा भी कई अन्य कारण हो सकते हैं, और पीलिया के लक्षणों में थकान, पीला रंग का मूत्र, खून की कमी, और त्वचा में पीलापन शामिल हो सकते हैं।

नवजात शिशु में पीलिया

पीलिया
नवजात शिशु में पीलिया

नवजात शिशु में पीलिया एक सामान्य चिकित्सीय स्थिति है जो जिगर की कमी के कारण होती है, जिससे बच्चे की त्वचा और आंतों का पीलापन होता है। यह नवजात शिशुओं में आमतौर पर होने वाली एक सामान्य स्थिति है, लेकिन इसे सचेत रहना महत्वपूर्ण है क्योंकि कभी-कभी यह गंभीर हो सकती है और सही समय पर उपचार की आवश्यकता हो सकती है।

नवजात पीलिया के कुछ मुख्य कारण हो सकते हैं:

  1. प्राकृतिक स्थितियाँ: नवजात शिशुओं में जिगर का पूरा रूप से विकसित नहीं होता, और कुछ समय तक इसकी कार्यक्षमता में कमी हो सकती है। यह एक सामान्य प्रक्रिया है जो शिशु के जीवन के पहले कुछ दिनों तक चलती रहती है।
  2. रक्त संरचना में कमी: नवजात शिशु के रक्त में हेमोग्लोबिन की कमी हो सकती है, जिससे पीलिया हो सकती है।
  3. रक्त से जुड़े अन्य कारण: नवजात पीलिया का कारण और कारगर उपचार निर्धारित करने के लिए बच्चे के रक्त की जाँच करना महत्वपूर्ण है। यदि हेमोग्लोबिन की कमी गंभीर है, तो चिकित्सक उचित उपचार सुझा सकता है।

अगर आपके नवजात शिशु में पीलिया के संकेत हैं, तो आपको त्वचा की रंगत में बदलाव को ध्यान से देखना चाहिए। यदि आपके बच्चे की त्वचा में पीलापन बढ़ रहा है, तो तुरंत एक पेड़ियाट्रिशियन से संपर्क करें। चिकित्सक बच्चे की स्थिति को मूल्यांकित करेगा और उचित उपचार सुझाएगा।

पीलिया के लक्षण

पीलिया
त्वचा का पीलापन
  1. त्वचा का पीलापन : त्वचा का पीलापन पीलिया का प्रमुख लक्षण है, जिससे त्वचा पीली दिखती है। इसे विशेषकर आंतरदृष्टि के क्षेत्रों में देखा जा सकता है। यदि आप इसे नोटिस कर रहे हैं, तो तुरंत चिकित्सक से परामर्श करें।
  2. आंखों का पीलापन: आंखों का पीलापन भी पीलिया का एक लक्षण हो सकता है और यह नजरिया में पीलापन का कारण बन सकता है। यदि बच्चे की आंखों में कुछ अनोमली है, तो चिकित्सक से सहायता प्राप्त करें।
  3. मूत्र में पीलापन : नवजात शिशु के मूत्र का पीला रंग अंजूरिया कहलाता है, जो एक और पीलिया का स्पष्ट लक्षण है। इस स्थिति पर चिकित्सक से बातचीत करना उचित है।
  4. कुछ मामूल्यांकन लक्षण : पीलिया के साथ थकान, अनावृत्ति, और उलटी का सामना कर सकते हैं, जिसपर ध्यान देना महत्वपूर्ण है। इन लक्षणों के साथ, त्वचा और आंतरिक स्वास्थ्य की समीक्षा के लिए डॉक्टर से मिलें।

पीलिया के कारण

पीलिया
लिवर स्किरोसिस
  1. हेपेटाइटिस इन्फेक्शन : हेपेटाइटिस वायरस, विशेषकर B और C टाइप, पीलिया का मुख्य कारण हो सकता है। ये वायरस जिगर को प्रभावित करके हेमोग्लोबिन की उत्पत्ति को कम कर सकते हैं, जिससे रक्त में कमी होती है। इसलिए, इसका समय पर पहचान और उपचार अत्यंत महत्वपूर्ण है।
  2. मलेरिया: मलेरिया एक मौसम बदलने पर होने वाली बुखारी है, जिसे एडीज मच्छरों के काटने से प्राप्त होता है। मलेरिया के कारण रक्त में हेमोग्लोबिन की उत्पत्ति में कमी हो सकती है, जिससे पीलिया हो सकती है।
  3. गैलब्लैडर संबंधित समस्याएं : गैलब्लैडर की समस्याएं भी पीलिया के कारण बन सकती हैं, क्योंकि इससे रक्त में हेमोग्लोबिन की मात्रा कम हो सकती है। इसलिए, गैलब्लैडर की स्वस्थता का ध्यान रखना अत्यंत महत्वपूर्ण है।
  4. लिवर स्किरोसिस : लिवर स्किरोसिस एक अन्य स्थिति है जिसमें जिगर की स्वस्थता पर असर करती है, और इससे पीलिया हो सकती है। यह जिगर की क्षमता को प्रभावित करके रक्त में हेमोग्लोबिन की कमी कर सकती है, जिससे त्वचा पीली दिखने लगती है।
  5. आणविक फैमिली इतिहास : यदि परिवार में पीलिया के किसी भी पूर्वज का संघ है, तो बच्चे को भी इस समस्या का सामना करने का खतरा हो सकता है। आणविक फैमिली इतिहास का जाँचन करना और आवश्यकता पर उपचार करना महत्वपूर्ण है।
  6. आलसी त्वचा : तेज आलसी त्वचा के कारण भी पीलिया हो सकती है, क्योंकि इससे जिगर में समस्याएं हेमोग्लोबिन की उत्पत्ति को बढ़ा सकती हैं, जिससे रक्त में कमी होती है। इसलिए, इस त्वचा स्वास्थ्य की देखभाल अत्यंत आवश्यक है।

पीलिया का आयुर्वेदिक इलाज

पीलिया
अनुलोम विलोम

पीलिया, जिसे आयुर्वेद में “कामला” या “हरिद्रा” कहा जाता है, एक बुढ़ापे की बीमारी नहीं है, बल्कि यह शिशु से लेकर बुढ़ापे तक किसी को भी हो सकती है। इसमें त्वचा, नख्यों, और आंखों का पीलापन होता है, जिसका कारण जिगर का समस्यात्मक कारण होता है। आयुर्वेद में, पीलिया का उपचार बचाव की दृष्टि से किया जाता है, जिसमें आहार, औषधियां, और चिकित्सा उपाय शामिल होते हैं।

आहार और पीलिया

आहार का खास महत्व है जब हम पीलिया के आयुर्वेदिक इलाज की बात करते हैं। पीलिया के मरीजों को संतुलित आहार लेना चाहिए, जिसमें पौष्टिक तत्वों की सही मात्रा हो। उन्हें ताजगी से भरा हुआ पूरा आहार मिलना चाहिए, और स्पाइसी, तीखा और तला हुआ खाद्य निवारित करना चाहिए। निरस्त हल्दी, कुट्की, और पुनर्नवा जैसी जड़ी-बूटियों का सेवन भी फायदेमंद हो सकता है।

1.आयुर्वेदिक औषधियां

  1. कुट्की (Picrorhiza kurroa): कुट्की एक प्रमुख आयुर्वेदिक औषधि है जो जिगर के स्वस्थ फ़ंक्शन को बढ़ावा देती है और पीलिया के इलाज में मदद कर सकती है। इसमें और आयुर्वेदिक चिकित्सक के मार्गदर्शन में सेवन करना चाहिए।
  2. पित्तापापदी चूर्ण: यह चूर्ण पीलिया के लिए एक प्रमुख औषधि है जो पित्त को शांत करने में मदद करती है और जिगर की स्वस्थता को बनाए रखती है।
  3. भूम्यामलकी (Phyllanthus niruri): भूम्यामलकी जिगर के लिए लाभकारी हो सकती है और पीलिया के इलाज में सहायक हो सकती है।
  4. पुनर्नवा (Boerhavia diffusa): पुनर्नवा मूत्र के संचार में मदद करती है और शरीर से विषैले पदार्थों को बाहर निकालने में मदद कर सकती है, जिससे पीलिया के लक्षण कम हो सकते हैं।
  5. आमला (Emblica officinalis): आमला जिगर की स्वस्थता के लिए फायदेमंद है और इम्यून सिस्टम को मजबूती प्रदान कर सकता है।

2.पंचकर्म थेरेपी

पंचकर्म आयुर्वेदिक चिकित्सा का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है जो शरीर से विषाक्ति करने में मदद कर सकता है। इसमें विरेचन, नास्य, और धौती शामिल हो सकते हैं, जो जिगर के स्वस्थ फ़ंक्शन को बढ़ावा देते हैं और पीलिया के इलाज में मदद कर सकते हैं।

3.योग और प्राणायाम

  • भ्रामरी प्राणायाम: भ्रामरी प्राणायाम जिगर को शांत करने में मदद करता है और तंतु सिस्टम को बैलेंस कर सकता है। यह प्राणायाम पीलिया के इलाज में उपयुक्त हो सकता है।
  • अनुलोम विलोम: योग के इस अभ्यास से तीन दोषों को संतुलित किया जा सकता है और शारीरिक संतुलन में सुधार हो सकता है, जिससे जिगर का स्वास्थ्य बना रहता है।
  • योगासन: त्रिकोणासन, पादहस्तासन, और भुजंगासन जैसे योगासन भी जिगर को स्वस्थ रखने में मदद कर सकते हैं।

आयुर्वेदिक चिकित्सक की सलाह

पीलिया के इलाज में सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा एक अच्छे आयुर्वेदिक चिकित्सक की सलाह और पर्यावेक्षण है। चिकित्सक रोगी की प्रकृति, रोग की स्थिति, और उनके सामाजिक और आयुर्वेदिक इतिहास का अध्ययन करके सही इलाज प्रदान कर सकते हैं।

पीलिया से बचने के उपाय

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स्वच्छता और साफ़ पानी
  1. स्वच्छता और साफ़ पानी: सबसे महत्वपूर्ण उपाय में से एक है स्वच्छता बनाए रखना और साफ पानी का सेवन करना। सही हाथ धोना और स्वच्छ पानी पीना इस बीमारी से बचाव के लिए महत्वपूर्ण हैं।
  2. बच्चों का टीकाकरण: पीलिया के खिलाफ टीकाकरण एक महत्वपूर्ण सुरक्षा कदम हो सकता है, खासकर हेपेटाइटिस बी के खिलाफ। बच्चों को उचित आयु पर सभी अनिवार्य टीके लगवाने का प्रयास करें।
  3. साफ भोजन: स्वस्थ और साफ भोजन खाना भी पीलिया से बचने में मदद कर सकता है। अन्न, फल, और सब्जियां सही तरीके से साफ़ किए जाने चाहिए।
  4. स्वस्थ जीवनशैली: स्वस्थ जीवनशैली अपनाना भी बीमारियों से बचाव का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। योग, प्राणायाम, और सही खानपान के साथ स्वस्थ जीवनशैली को अपनाएं।
  5. व्यक्तिगत सामग्री का संवेदनशील इस्तेमाल: व्यक्तिगत सामग्री जैसे चिरचिना, तंतु, और नाक के सामग्री का सही से इस्तेमाल करने का पूरा ध्यान रखें। विशेषकर नुस्खे का सही से उपयोग करें और नकली या गैर-प्रमाणित सामग्री से बचें।
  6. रक्त संबंधी संबंधों की जाँच: रक्त संबंधी संबंधों की जाँच करवाना महत्वपूर्ण है, खासकर यदि परिवार में पीलिया है तो। यह बच्चों को भी इस बीमारी से बचाने में मदद कर सकता है।
  7. सावधानियां:
  • संक्रमण के खतरे के कारण ब्लड ट्रांसफ्यूजन और साझा इंजेक्शन से बचें।
  • नशीली चीजो से बचें जो हेपेटाइटिस बी और सी के संबंध में हो सकती हैं।

If you have any queries related to medical health, consult Subhash Goyal or his team members on this given no +91 99150 72372, +91 99150 99575, +918283060000

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